रास्ता!

-प्रियंका जैन
बहुत थकान सी महसूस होती है अब चलते चलते
कदम भी हौसलों की तरह कुछ लड़खड़ाने से लगें हैं

इच्छा है कि अब कहीं बैठ कर थोड़ा आराम कर लूँ
रास्ता बहुत लम्बा है और मंज़िल आंखों के दायरे से दूर
मंज़िल कैसी दिखती है ये भी नहीं पता अभी तो, मगर
सुंदर ही होगी क्योंकि सब लोग मंज़िल पाना चाहते हैं।

सहारे के लिए ना कोई पेड़ नज़र आता है ना ही कोई दीवार
महज़ एक खाली-लम्बा रास्ता है और उस पर चल रही मैं
भूख और प्यास बुझाने के लिए बहुत कुछ है यहाँ, मगर
अब इच्छा किसी और चीज़ की है जो कहीं दीखती नहीं।

फ़िर सवाल ये है मन में कि क्या सबकी मंजिल एक है
मुझे लोगों ने बताया कि मेरी मंज़िल क्या है और कहाँ है
रास्ता भी उन्होंने दिखाया और मैं चलाने लगी, मगर
ये मुमकिन है कि उन्हें अपनी ही मंज़िल गलत मालूम हो।

अब थक चुकी हूँ मैं चलते चलते पर सफ़र तो अभी शुरू हुआ है
हौसले मज़बूत करने ज़रूरी हैं क्योंकि चलना बहुत है अभी
एक इच्छा ये है कि कोई साथी मिल जाए इसी रास्ते में कहीं
दोनों को सहारा मिल जाएगा, रास्ता थोड़ा आसान हो जाएगा

फ़िर डर लगता है कि कहीं सहारे की आदत न हो जाए, क्योंकि
सुना है कि अक्सर साथ छूट जाने पर कदम रुक जाया करते हैं।
कितनी भी थकान महसूस हो, सफ़र तो पूरा करना ही है
लड़खड़ाते कदमों और हौसलों से भी तो मंज़िल मिल जाएगी

लेकिन अब ख्वाहिश है कि कहीं बैठ कर थोड़ा आराम कर लूँ
क्योंकि रास्ता बहुत लम्बा है, मंज़िल आंखों के दायरे से दूर
मंज़िल क्या है और कैसी दिखती है ये मालूम नही, मगर
चलते रहना बहुत ज़रूरी है जब तक वहां पहुंच न जाऊं। 

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